ग्राहक बना बेचारा
द्वापर युग के चक्रव्यूह से भी अधिक पेचीदगी वाला है कुकिंग गैस विरतण तंत्र। आगरा में कुकिग गैस वितरण व्यवस्था अविश्वसनीयता के दौर में पहुंच गयी है। एक ओर इस पर न तो भारत सरकार के कार्यदायी उपकृम ही निगरानी करने की स्थिति में हैं और न ही दूसरी ओर समाजवादी सरकार के नागरिक अपूर्ति व्यवस्था से जुडा तंत्र। बुकिंग के लिए इस्तेमाल में आ रहा साफ्टवेयर टैम्परिग का शिकार है। आप कई ट्रायल में अगर गैस का सिलेण्डर बुक करवाने में कामयाब भ्ाी हो गये तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपके पास सिलेण्डर पहुंच ही जाए। यह बात अलग है कि मोबाइल पर एसएमएस का आना जरूर बना रहेगा।
जब डिलीवरी का मैसेज आये दो दिन बीत जायेंगे तब आप थो़ड़े परेशान होकर जब डीलर के पास पहुंचेंगे तो कम्प्यूटर के करसर को एक-दो बार क्लिक करके वह कहेगा कि कल आपको आपका सिलेंडर मिल जायेगा। गैस कंपनियां करवाये सर्वेक्षण आप तो असंगठित उपभोक्ता होने के कारण भले ही बेवजह के झगडे़ से बचने के लिये चुप होकर बैठ जाये किन्तु इंडियन आइल और भारत पैट्रोलियम के सेल्स और पीआरओ विभागों को खामोश होकर नहीं बैठना चाहिए। लगातर सर्वेक्षण करवाने पर मिले पब्लिक फीडबैक के आधार पर उन आपराधिक तत्वों के प्रति सख्ती करनी चाहिए जो आम उपभोक्ता को समय से गैस सिलेण्डर पहुंचाये जाने की जिम्मेदारी से बचने के लिए साफ्टवेयर में बेखौफ टैम्परिंग कर रहे हैं।
इस मामले में पुलिस की साइबर सैल खास उपयोगी साबित हो सकती है, संसाधनों की दृष्टि से तकनीकी रूप से गडबडी़ करने वालों तक पहुंचने में पूरी तरह सक्षम है। वर्तमान में आगरा में आम उपभोक्ता पूरी तरह से असंगठित है और उसके सामने वितरण तंत्र का एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें घुसकर निकलना द्वापर युग से भी कई गुना मुश्किल है।
• राजीव सक्सेना
आगरा/फ़ेसबुक
द्वापर युग के चक्रव्यूह से भी अधिक पेचीदगी वाला है कुकिंग गैस विरतण तंत्र। आगरा में कुकिग गैस वितरण व्यवस्था अविश्वसनीयता के दौर में पहुंच गयी है। एक ओर इस पर न तो भारत सरकार के कार्यदायी उपकृम ही निगरानी करने की स्थिति में हैं और न ही दूसरी ओर समाजवादी सरकार के नागरिक अपूर्ति व्यवस्था से जुडा तंत्र। बुकिंग के लिए इस्तेमाल में आ रहा साफ्टवेयर टैम्परिग का शिकार है। आप कई ट्रायल में अगर गैस का सिलेण्डर बुक करवाने में कामयाब भ्ाी हो गये तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपके पास सिलेण्डर पहुंच ही जाए। यह बात अलग है कि मोबाइल पर एसएमएस का आना जरूर बना रहेगा।
जब डिलीवरी का मैसेज आये दो दिन बीत जायेंगे तब आप थो़ड़े परेशान होकर जब डीलर के पास पहुंचेंगे तो कम्प्यूटर के करसर को एक-दो बार क्लिक करके वह कहेगा कि कल आपको आपका सिलेंडर मिल जायेगा। गैस कंपनियां करवाये सर्वेक्षण आप तो असंगठित उपभोक्ता होने के कारण भले ही बेवजह के झगडे़ से बचने के लिये चुप होकर बैठ जाये किन्तु इंडियन आइल और भारत पैट्रोलियम के सेल्स और पीआरओ विभागों को खामोश होकर नहीं बैठना चाहिए। लगातर सर्वेक्षण करवाने पर मिले पब्लिक फीडबैक के आधार पर उन आपराधिक तत्वों के प्रति सख्ती करनी चाहिए जो आम उपभोक्ता को समय से गैस सिलेण्डर पहुंचाये जाने की जिम्मेदारी से बचने के लिए साफ्टवेयर में बेखौफ टैम्परिंग कर रहे हैं।
इस मामले में पुलिस की साइबर सैल खास उपयोगी साबित हो सकती है, संसाधनों की दृष्टि से तकनीकी रूप से गडबडी़ करने वालों तक पहुंचने में पूरी तरह सक्षम है। वर्तमान में आगरा में आम उपभोक्ता पूरी तरह से असंगठित है और उसके सामने वितरण तंत्र का एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें घुसकर निकलना द्वापर युग से भी कई गुना मुश्किल है।
• राजीव सक्सेना
आगरा/फ़ेसबुक
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