पुरानी जुगाड़
राजधानी में पुलिस-ट्रेफ़िक पुलिस की नाक के नीचे ऐसी तमाम रेहड़ियां चल रही हैं जो अक्सर मुझे ही नहीं और तमाम लोगों को भी दिख जाती हैं। इनमें स्कूटर का इंजिन, एक पहिया और हैण्डिल होता है। भारी वजन लादकर भी यह अच्छी गति से चलती है। न पंजीकरण, न ड्रायविंग लायसेन्स, न प्रदूषण प्रमाण पत्र वगैरह चाहिए। बस पेट्रोल भरो, जन सेवा करो। खेद की बात यह है कि इस रेहड़ी में सरकारी गैस कम्पनी ’भारत’ गैस के सिलेण्डर लदे हैं- घर-घर वितरण के लिए। यह तय है कि ऐसी रेहड़ियां यूं ही नहीं चल रहीं भले ही कभी लोगों को इसकी बड़ी कीमत न चुकानी पड़े।
राजधानी में पुलिस-ट्रेफ़िक पुलिस की नाक के नीचे ऐसी तमाम रेहड़ियां चल रही हैं जो अक्सर मुझे ही नहीं और तमाम लोगों को भी दिख जाती हैं। इनमें स्कूटर का इंजिन, एक पहिया और हैण्डिल होता है। भारी वजन लादकर भी यह अच्छी गति से चलती है। न पंजीकरण, न ड्रायविंग लायसेन्स, न प्रदूषण प्रमाण पत्र वगैरह चाहिए। बस पेट्रोल भरो, जन सेवा करो। खेद की बात यह है कि इस रेहड़ी में सरकारी गैस कम्पनी ’भारत’ गैस के सिलेण्डर लदे हैं- घर-घर वितरण के लिए। यह तय है कि ऐसी रेहड़ियां यूं ही नहीं चल रहीं भले ही कभी लोगों को इसकी बड़ी कीमत न चुकानी पड़े।
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