गौरैया को मिला दिल्ली के राज्य पक्षी का दर्ज़ा
गौरैया को अपने घर और आसपास उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराने के मामले में
हमें भी थोड़ा प्रयास करना चाहिए। घने छायादार पेड़ लगाएं जो गौरैया को आश्रय
दे सकें। कच्ची जमीन नहीं हो तो छोटे-बड़े गमलों में पेड़-पौधे लगाएं। गमलों
की जगह पेट या प्लास्टिक की बोतल-डिब्बों को काटकर उनका उपयोग भी किया जा
सकता है। फ़ूल वाले पौधे भी इनके लिए उपयुक्त होते हैं। इन पर बैठने वाले
कीट-पतंगे गौरैया का आहार भी बनते हैं। एक मिट्टे के बरतन में पक्षियों के
लिए साफ़ पानी रखा जा सकता है और रोटी के टुकड़े, ब्रेड, दाल, चावल, गेहूं,
बाजरा आदि अनाज दाने के रूप में डाले जा सकते हैं।

जानेमाने पर्यावरणविद दिलावर के नेतृत्व में मुम्बई की संस्था नेचर फ़ॉ एवर सोसायटी ने गौरैया को बचाने के अभियान की पहल की है। हमारे यहां लोकगीतों में यह सीधासाधा पक्षी सदा रहा है। बच्चे और बड़े इसके दीवाने रहे है और गौरैया कवि-लेखकों की रचनाओं में पर्याप्त महत्व के साथ उपस्थित रही है।
गौरिया को प्राकृतिक या उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराया जाना आवश्यक है। तभी यह पक्षी दिखाई देता रहेगा। चिड़ियों को दाना और पानी रखने पर लोगों को फ़िर ध्यान देना होगा। इसमें कुछ विशेष खर्च नहीं आता, बस थोड़ा सा ध्यान देने और ध्यान रखने से बात बन जाएगी। यह जिम्मेदारी बच्चों को सौंप दी जाए तो वे बड़े उत्साह और चुस्ती से उसे निभाते हैं।

पर्यावरणविद दिलावर के प्रयास से २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। राजधानी में उन्हीं के प्रयास से राइज़ फ़ॉर द स्पैरोज़ अभियान शुरू हुआ है। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्ड्स ने गौरैया को रेड लिस्ट में शामिल किया है।
घरों में आंगन, हरियाली, बगीचे और पेड़-पौधे खत्म होते जाना गौरैया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। इनके घोंसलों के लिए जगह मिलना दूभर हो गया है। घर में यदि गौरैया कहीं घोंसला बना ले तो सफ़ाई पसन्द आधुनिक के रंग में रंगे लोग इनके घोंसले को साफ़ करने से भी नहीं हिचकते। मिलावटी, रासायनिक खादयुक्त दाना और गन्दा पानी भी इनके जीवन में ज़हर घोलते आ रहे हैं।
जगह-जगह लगे मोबाइल फ़ोन टावर, बिजली के तार-खम्भे वगैरह भी इनके लिए अशुभ सिद्ध हुए हैं। मोबाइल फ़ोन टावर से उत्पन्न होने वाला रेडिएशन से इनकी प्रजनन क्षमता कम हुई है।
अब गौरैया को संरक्षण देने के सही प्रयासों की आवश्यकता है। यह सिर्फ़ सरकार, संस्थाओं या लोगों की ही नहीं सभी की जिम्मेदारी है कि थोड़ा सा ध्यान इस मासूम पक्षी की ओर भी दें। दिल्ली में बच्चों की शिक्षा में गौरैया का पाठ शामिल किया जाएगा। दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में पक्षियों के बारे मे विस्तृत अध्ययन हेतु कॉमन बर्ड मॉनीटरिंग प्रोग्राम भी तैयार किया जाएगा।
गौरैया को अपने घर और आसपास उपयुक्त वातावरण उपलब्ध कराने के मामले में हमें भी थोड़ा प्रयास करना चाहिए। घने छायादार पेड़ लगाएं जो गौरैया को आश्रय दे सकें। कच्ची जमीन नहीं हो तो छोटे-बड़े गमलों में पेड़-पौधे लगाएं। गमलों की जगह पेट या प्लास्टिक की बोतल-डिब्बों को काटकर उनका उपयोग भी किया जा सकता है। फ़ूल वाले पौधे भी इनके लिए उपयुक्त होते हैं। इन पर बैठने वाले कीट-पतंगे गौरैया का आहार भी बनते हैं। एक मिट्टे के बरतन में पक्षियों के लिए साफ़ पानी रखा जा सकता है और रोटी के टुकड़े, ब्रेड, दाल, चावल, गेहूं, बाजरा आदि अनाज दाने के रूप में डाले जा सकते हैं। हर २-४ दिन बाद पानी के बरतन को साफ़ किया जाना चाहिए। घर मे लम्बी बेल या पेड़ हो तो गौरैया स्वत: आने-रहने लगेंगी। घर में कोई ऐसा स्थान भी गौरैया को उपलब्ध कराया जा सकता है जहां वह अपना घोंसला बनाकर रह सके। भूलकर भी उसका घोंसला उजाड़ने का पाप नहीं करना चाहिए।
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