शिकायत बोल

शिकायत बोल
ऐसा कौन होगा जिसे किसी से कभी कोई शिकायत न हो। शिकायत या शिकायतें होना सामान्य और स्वाभाविक बात है जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। हम कहीं जाएं या कोई काम करें अपनों से या गैरों से कोई न कोई शिकायत हो ही जाती है-छोटी या बड़ी, सहनीय या असहनीय। अपनों से, गैरों से या फ़िर खरीदे गये उत्पादों, कम्पनियों, विभिन्न सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की सेवाओं, लोगों के व्यवहार-आदतों, सरकार-प्रशासन से कोई शिकायत हो तो उसे/उन्हें इस मंच शिकायत बोल पर रखिए। शिकायत अवश्य कीजिए, चुप मत बैठिए। आपको किसी भी प्रकार की किसी से कोई शिकायत हो तोर उसे आप औरों के सामने शिकायत बोल में रखिए। इसका कम या अधिक, असर अवश्य पड़ता है। लोगों को जागरूक और सावधान होने में सहायता मिलती है। विभिन्न मामलों में सुधार की आशा भी रहती है। अपनी बात संक्षेप में संयत और सरल बोलचाल की भाषा में हिन्दी यूनीकोड, हिन्दी (कृतिदेव फ़ोन्ट) या रोमन में लिखकर भेजिए। आवश्यक हो तो सम्बधित फ़ोटो, चित्र या दस्तावेज जेपीजी फ़ार्मेट में साथ ही भेजिए।
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सोमवार, 27 जनवरी 2014

सूचना का अधिकार

सूचना का अधिकार अधिनियम का पूरा सच
जब भी राइट ऑफ़ इनफार्मेशन की बात आती है तो कांग्रेस अपनी पीठ थपथपाती है कि हमने जनता को जानने का अधिकार दिया। क्या आपने कभी सोचा कि जिस RTI कि वज़ह से कांग्रेस सरकार का इतना भ्रष्टाचार जनता के सामने उजागर हुआ और जो RTI आज भ्रष्टाचार कि खिलाफ जनता का मज़बूत और कारगर हथियार साबित हो रहा है उसे कांग्रेस ने जनता को क्यों दिया? क्या वास्तव में कांग्रेस जनता को सूचना का स्वीकार देना चाहती थी? क्या RTI का श्रेय कांग्रेस को दिया जाना चाहिए? क्या वास्तव में कांग्रेस ने इस पर कोई काम किया था? इस सवाल का जवाब जानने के लिए राईट तो इनफार्मेशन एक्ट कि पृष्ठभूमि जानना आवश्यक है। 
सन २००२ में माननीय सुप्रीम कोर्ट का एक केस में फैसला आया। केस का नाम था Union of India v/s Association for democratic reforms (AIR – 2002 SC 2112) इस केस में माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रश्न था कि क्या किसी मतदाता को अपने प्रत्याशी के बारे में जानने का अधिकार है अथवा नहीं? इस केस के माध्यम से यह मांग की गयी थी कि जो भी व्यक्ति चुनाव में खड़ा होता है उसे अपनी समस्त जानकारी जनता को बतानी चाहिए। इसके लिए उसके द्वारा उन जानकारियों को प्रकाशित किया जाना चाहिए अथवा मांगे जाने पर उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर अपना निर्णय दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 19(1)A के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान कि गयी है और इसी अनुच्छेद के अंतर्गत ही प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रत्याशी के बारे में जानने का अधिकार भी उसे प्राप्त होता है तथा इस अनुच्छेद के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों पर प्रतिबन्ध केवल अनुच्छेद19(2) के द्वारा ही लगाया जा सकता है, इसके अतरिक्त उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता। अतः चुनाव आयोग का यह दायित्व बनता है कि वह इस विषय पर कार्य करे और जब कोई व्यक्ति किसी प्रत्याशी के बारे में सूचना प्राप्त करना चाहे तब चुनाव आयोग उसे वह सूचना उपलब्ध करवाये तथा इससे पहले चुनाव आयोग प्रत्येक प्रत्याशी से सभी जानकारी प्राप्त करे। 
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से सूचना के अधिकार का प्राम्भ हुआ। इस निर्णय के आने के बाद देश भर में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि अब माननीय न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनता को प्रत्येक प्रत्याशी के बारे में जानने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)A में है तो क्या किसी भी चुने हुए प्रतिनिधि के बारे में जानने का अधिकार भी जनता को है? क्या किसी पब्लिक अथॉरिटी से जनता से जुड़े विषयों से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार भी हमें संविधान द्वारा प्रदान किया गया है? 
उधर चुनाव आयोग ने सभी प्रत्याक्षियों को यह रेगुलेशन जारी कर दिया कि आप अपनी पूरी जानकारी Affidavit के साथ आयोग में जमा करवाएं। इस बात पर हड़कम्प मच गया। सुप्रीम में कई मुकदमे गये। इस पर संसद के अंदर और बाहर चर्चा हुई। परन्तु चूंकि अनुच्छेद 19(1)A संविधान द्वारा दिया गया फंडामेंटल राईट है, और फंडामेंटल राईट पर कोई भी रेगुलेशन प्रिवेल नहीं कर सकता। अतः इस निर्णय को बदला नहीं जा सका। 
जिस समय यह निर्णय आया केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी जी की बीजेपी NDA सरकार सत्ता में थी। उन्होंने इस निर्णय को आधार बना कर एक एक्ट पास किया जिसे कहा गया FREEDOM OF INFORMATION ACT 2002 (ACT NO. 5 OF 2003) (http://indiacode.nic.in/fullact1.asp?tfnm=200305) चूंकि ये संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार फ्रीडम ऑफ़ स्पीच एंड एक्सप्रेशन से निकला था अतः इसे FREEDOM OF INFORMATION नाम दिया गया। यह एक्ट लागु होता उससे पहले ही 2004 के चुनावों में बीजेपी चुनाव हार गयी और सत्ता से बाहर हो गयी। अब केंद्र में नयी सरकार थी, कॉंग्रेस UPA गठबंधन कि सरकार। अब चूंकि संसद द्वारा इस एक्ट को पास कर दिया गया था और देश भर में इस पर बहुत चर्चा हो गयी थी। यानि कि इस एक्ट पर इतना कार्य किया जा चूका था कि इसे अब रोक पाना मुमकिन नहीं था। परन्तु कांग्रेस ये जानती थी कि अगर इस एक्ट को इसी रूप में लागू कर दिया गया तो उन्हें इसका क्रेडिट नहीं मिलेगा। यही सोच कर उसने इस एक्ट में कुछ अमेंडमेंट्स करके इसका नाम बदल दिया और 2005 में इसे नए नाम के साथ Right to Information Act 2005 के नाम से पास कर पूरे देश में लागु कर दिया। 
अब कांग्रेस सभी से यह कहती है कि हमने जनता को सूचना का अधिकार दिया , जबकि ये पूरा सच नहीं है। सन 2003 कि जनवरी में ही Freedom of Information Act 2002 पास हो चुका था। और उसके पीछे का कारण था माननीय न्यायालय का वह निर्णय जिस पर बीजेपी सरकार ने यह एक्ट पास किया। 
लोगों में यह भ्रम पैदा किया गया कि कांग्रेस सरकार ने इस एक्ट को पास किया। और देश से भ्रस्टाचार मिटने और सुसाशन लाने के लिए इस एक्ट को लाया गया। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। 
इस एक्ट को लाने का क्रेडिट किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता। यदि किसी को क्रेडिट दिया जाना चाहिए तो माननीय सर्वोच्च न्यायालाय को और उन न्यायमूर्तियों को जिन्होंने ने संविधान में प्रदत्त अधिकारों कि उचित व्याख्या की तथा तत्कालीन बीजेपी सरकार को जिसने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को आधार बना कर फ्रीडम ऑफ़ इनफार्मेशन एक्ट बनाया और संसद से पास किया, जिसे आगे चलकर सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के नाम से लागु किया गया। 
ये जो भ्रम कांग्रेस ने प्रचारित किया है, इसे तभी दूर किया जब इस सच का अधिक से अधिक प्रचार किया जाये। अब जबकि सच आप सब के सामने है तो आपसे निवेदन है कि इस सच को अधिक से अधिक प्रचारित करने में आप भी मदद करें। इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें। 
• साभार
लिन्क- https://www.facebook.com/EKDHARMYUDDH 

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

सावधान

जहर से बचाएं बच्चों को
अपने बच्चों को विदेशी कंपनी Johnson & Johnson के जहरीले उत्पादो से बचाएं! और उन हरामखोर डाक्टरों से भी बचें जो इस कंपनी से मिलने वालों टुकड़ो की खातिर आपके बच्चो की जान को दांव पर लगा देते हैं, आपको इस कंपनी के उत्पाद इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं !
देखें-
http:// www.youtube.com/ watch?v=hBXx2ROl CBg
आप इन सब की जगह ये करिए
बादाम का तेल छोटे बच्चों की मालिश के लिए बहुत लाभदायक होता है इसके अलावा सरसों, नारियल का तेल या आयुर्वैदिक तेल (डाबर, बैद्यनाथ , पतंजलि आदि कंपनियो के) से भी मालिश कर सकते है। मालिश सदैव हलके हाथ से ही करनी चाहिए। मालिश तेल थपथपा कर एकदम धीरे हाथ से करनी चाहिए। यदि आप स्वयं अपनी मालिश कर रही हैं तो हलके हाथ से मांसपेशियों पर दबाव डालकर सदा नीचे से ऊपर की ओर मालिश करें। मालिश और खाने के बीच भी करीब घंटे भर का अन्तराल जरूरी है। खाना खाने के तुरंत बाद मालिश करेंगे तो बच्चे को उलटी की आशंका होती है।
बच्चों की त्वचा बड़ों की तुलना में काफी नाजुक होती है और बाजार मे जो भी बच्चो वाले साबुन आदि मिलते है वे कैमीकल से बनते है आप बच्चों को नहलाने के लिए दूध, दही, आयुर्वैदिक साबुन (बिना कैमीकल वाला, पंचगव्य से बना) का इस्तेमाल करें। 
टेल्कम पाउडर का प्रयोग न करना शिशु के लिए बेहतर है क्योंकि अनेक बार असावधानीवश सांस के माध्यम से पाउडर शिशु के फेफड़ों में चला जाता है जो शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकता है और पाउडर में कई जहरीले कैमीकल भी डाले जा रहे है जो नुकसानदायक है।
• साभार
• स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

रविवार, 19 जनवरी 2014

धोखा

पेट्रोल पंप वालों का धोखा
• हर पेट्रोल पंप में पेट्रोल के लिए १ लीटर २ लीटर के नाप होती है सो वहां प्राय: १-२ लीटर में चोरी नहीं करते। इसलिए वे सैटिंग करते है १०० रुपये में २०० रुपये में ५०० रुपये में जिस से उनकी चोरी कभी पकड़ में नहीं आती क्यों कि १०० रुपये का पेट्रोल हम कभी नाप नहीं कर सकते या उसका हिसाब नहीं जोड़ते इसलिए वे कम पेट्रोल की सैटिंग हमेशा १०० २०० ३०० ५०० १००० में ही करते हैं।
• आपसे निवेदन है के जब भी आप पेट्रोल भरवाएं आप १०५ रुपये २०५ रुपये या एक लीटर २३३ रुपये ऐसे ऑड फिगर में भरवाएं तो आपको कभी भी कम पेट्रोल नहीं मिलेगा।
• कर के देखिए आपका फायदा अवश्य होगा।
• यह सुझाव जनहित में है सो इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना न भूलें।
सौजन्य: स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

अमानवीयता

गौ-हत्या का अर्थशास्त्र 
• सोनिया गौड़
• भारत में गाय का मांस 120/- रुपये किलो खुलेआम बिक रहा है.
• एक गाय-भैंस-बैल के कटने पर लगभग 350 किलो मांस निकलता है. चमड़े और हड्डियों की अलग से कीमत मिलती है!
• जो पशु गांव में औसतन 8000-9000/- रुपये में मिल जाते हैं और सूखे वाले प्रदेशो में तो यह 3000/- रुपये में ही मिल जाते हैं। पशु की कीमत 8000/- उसे काटने से मिला मांस 350 किलो
• भारत में उस मांस का दाम 350x120 = 42,000/- रुपये, चमड़े का दाम 1000/-
• विदेशो में निर्यात करने पर यही मांस 3 से 4 गुना दाम में बिकता है और यह निर्भर करता है कि उसे किस देश में भेजा जा रहा है|.
• किसान को मिला सिर्फ 9000/- रुपये और कत्लखाना चलाने वाले को मिले 43000 - 9000 = 34,000/- रुपये।
• भारत में एक-एक कत्लखाने में 10,000 से 15,000 पशु रोज कट रहे हैं यानी औसत 12,000 पशु रोज।
तो- एक कत्लखा मालिक एक दिन में 34000x12000 = 40,80,00,000/- (चालीस करोड़ रुपये) रोज का मुनाफा कमा रहा है।
• यदि साल में 320 दिन यह काम चले तो 40 करोड़ x 320 = 12800 करोड़ रुपये शुद्ध मुनाफा हुआ सालाना तो कत्लखाना चलाने वाला इसे क्यों बंद करेगा! उसको जबरदस्ती बंद करवाना पड़ेगा और वो काम सरकार कर सकती है. इसलिए गौरक्षक सरकार लानी होगी!
• उत्तर प्रदेश मे 8 अत्याधुनिक कत्लखानों के लिए जो टेंडर मंगवाएँ हैं उनमें ऐसी मशीनों का प्रयोग होगा जो 1 दिन में हजारों मवेशियों की 'हत्या' करेगी. एक ऐसी मशीन है जिसमें पशु को एक संकरी गली में घुसेड़ा जाता है और आखिरी सिरे पर एक दर्पण होता है मवेशी उसे छूने के लिए जैसे ही अपना सिर अंदर करता है. मशीन उसकी गर्दन को जकड़ लेती है और तुरंत उसका सिर धड़ से अलग हो जाता है।
• क्या आपको पता है की उत्तर प्रदेश में 15 कत्लखाने खोलने की अनुमति चीफ मिनिस्टर (अखिलेश यादव) ने दी है, जहां एक कत्लखाने में एक दिन में 10,000 (दस हजार) जानवरों को काटा जायेगा तो एक दिन में 15 कत्लखानों में 1,50,000 जीवों की 'हत्या' होगी।
अगर आप जीव प्रेमी हैं, तो इस Message को इतना विस्तार दें कि सभी इसके समर्थन में खड़े हो जाएँ और चीफ मिनिस्टर को अनुमति वापस लेनी पड़े!
गौरक्षा के लिए इतना तो आप कर ही सकते हैं!
लिन्क: https://www.facebook.com/soniyabgaur/posts/649359131788487