शिकायत बोल

शिकायत बोल
ऐसा कौन होगा जिसे किसी से कभी कोई शिकायत न हो। शिकायत या शिकायतें होना सामान्य और स्वाभाविक बात है जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। हम कहीं जाएं या कोई काम करें अपनों से या गैरों से कोई न कोई शिकायत हो ही जाती है-छोटी या बड़ी, सहनीय या असहनीय। अपनों से, गैरों से या फ़िर खरीदे गये उत्पादों, कम्पनियों, विभिन्न सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की सेवाओं, लोगों के व्यवहार-आदतों, सरकार-प्रशासन से कोई शिकायत हो तो उसे/उन्हें इस मंच शिकायत बोल पर रखिए। शिकायत अवश्य कीजिए, चुप मत बैठिए। आपको किसी भी प्रकार की किसी से कोई शिकायत हो तोर उसे आप औरों के सामने शिकायत बोल में रखिए। इसका कम या अधिक, असर अवश्य पड़ता है। लोगों को जागरूक और सावधान होने में सहायता मिलती है। विभिन्न मामलों में सुधार की आशा भी रहती है। अपनी बात संक्षेप में संयत और सरल बोलचाल की भाषा में हिन्दी यूनीकोड, हिन्दी (कृतिदेव फ़ोन्ट) या रोमन में लिखकर भेजिए। आवश्यक हो तो सम्बधित फ़ोटो, चित्र या दस्तावेज जेपीजी फ़ार्मेट में साथ ही भेजिए।
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गुरुवार, 13 अगस्त 2015

अश्लीलता

Impose Ban on Dirty Websites in India  
भारत के लिए भस्मासुर हैं अश्लील वेबसाइटें
क्या कभी आपने सोचा है कि हमारी अपनी संस्कृति पर अधिकार जताने के लिए हम क्यों विवश हैं? क्यों ग्लोबलाइजेशन व उदारवादी विश्व अर्थव्यवस्था के नाम पर अनाचार, अश्लील, अनैतिक व अवैध कार्यों को वैध बनाने की कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की साजिश में हमें भागीदार बनाया जा रहा है?
जी हाँ, भारत में इंटरनेट क्रांति आने के 10-12 सालों के बाद आखिरकार पोर्न साईटों और समाज व देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभावों पर एक खुली बहस छिड़ ही गई है। चुपके-चुपके एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत भारत के कानूनों के अनुसार अवैध इन बेवसाइटों को विदेशी सर्वरों के माध्यम से हर घर व आफिस में संवेदनहीन अन्तरराष्ट्रीय बाजारू ताकतों व उनके भारतीय एजेंटों द्वारा घुसा दिया गया। बिना इस बात का अध्ययन, विश्लेषण, बहस व रक्षात्मक उपाय किये बगैर, कि इस वैचारिक अतिक्रमण व सांस्कृतिक प्रदुषण से आम भारतीय विशेषकर बच्चे, किशोर व औसत बुद्धि के वयस्कों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेंगे? कैसे समाज का पारिवारिक ढांचा टूटने लगेगा और समाज यौन पिपासु हो आत्मघाती होता जाएगा? हमें इस षडयंत्र के भारतीय गुनहगारों को खोजकर सजा दिलानी होगी. किन्तु इसकी आवाज उठाने से पूर्व हम अपनी माँग कि अश्लील पोर्न साईटों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगना चाहिए के पक्ष में कुछ तर्क रखना चाहते हैं-
• उच्चतम न्यायालय ने पोर्न साईटों से संबंधित याचिका की सुनवाई के समय माना कि ‘चाइल्ड पोनोग्राफी’ गलत है और इससे संबंधित सामग्री को इंटरनेट पर प्रतिबंधित करने के सरकार को आदेश दिए। हमारा उच्चतम न्यायालय से आग्रह है कि जितने संवेदनशील आप उन विदेशी बच्चों के प्रति है जिनका शोषण कर ऐसी पोर्न फिल्मों का निर्माण किया जाता है उतना ही संवेदनशील अपने देश के के बच्चों, किशोरों व औसत बुद्धि के व्यस्कों के प्रति भी हो और उन पर इन साईटों के देखने से पड़ने वाले दुष्प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन करा लेने के बाद ही कोई निर्णय लें।
• कुछ लोग पोर्न को सही मानते हैं और इसे व्यक्ति की नैसर्गिक जरूरत तक के रूप में परिभाषित करते हैं। उनके अपने तर्क हो सकते हैं, किन्तु हमारे अनुसार किसी भी देश व समाज की अपनी-अपनी संस्कृति, सामाजिक सोच व बौद्धिक विकास की प्रक्रिया व दुनिया को देखने व जीने के तरीका होता है यह सबके लिये एक जैसा हो ही नहीं सकता।
• मौलिक भारत नामक संस्था ने सैकड़ों सामाजिक व धार्मिक संगठनों के साथ मिलकर पिछले एक वर्ष से अश्लीलता, नशाखोरी व इनके कारण नारी पर हाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध एक अभियान चलाया हुआ है। हमें अभी तक 100 प्रतिशत लोगों ने समर्थन दिया है, हमारी खुली चुनौती है कि सरकार इस मुद्दे पर सभी तथ्यों को निष्पक्ष रूप से जनता के सामने रखकर जनमत संग्रह करा लें। हमारा पूरा विश्वास है कि 99 प्रतिशत भारतीय इस प्रकार की अश्लील बेवसाईटों के विरोध में मत देंगे। जनता से प्राप्त सुझावों व उनपर चिंतन-मंथन, विश्लेषण और शोध के उपरान्त हमारे कुछ स्पष्ट मत व तर्क हैं। हमारा उच्चतम न्यायाल व भारत सरकार से अग्रह है कि वे अदालती सुनवाई के समय इन तर्को व प्रश्नों का सारगर्भित जवाब देश की जनता को दे अन्यथा तुरन्त प्रभाव से पोर्न साइटों पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया शुरु करें।
• क्या पश्चिमी देशों में पोर्न साइटों व इनसे संबंधित व्यापारिक गतिविधियों को 5-7 वर्षों के अंदर समाज पर थोप दिया गया था?
• क्या जिन देशों में पोर्न देखना वैध है उन्होंने पहले किसी अन्य देश की ऐसी फिल्में देखी और फिर अपने देश में ऐसे व्यापार को प्रारंम्भ किया जो हम पर विदेशी पोर्न साइटों को हमसे पूछे बिना व बिना बहस के ही थोप दिया गया।
• क्या ऐसा कोई विश्वसनीय सर्वेक्षण है जो यह बताता हो कि पोर्न के व्यापार में लगे लोग अपने कार्यों से खुश हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उनके कार्यों को सुरक्षित व्यापार की श्रेणी में मान्यता दी हो?
• पोर्न साइटों की वकालत करने वाले मीडिया समूह इनका विरोध करने वालों को अपनी कवरेज में जगह क्यों नहीं देते?
• ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान हमारे पास उपलब्ध हैं जो प्रमाणित करते हैं कि पोर्न-देखने के बाद मानव में पशुता का भाव आ जाता है और उसके मन में रिश्तों की दीवार समाप्त हो जाती है व वह सामने वाले पुरुष या स्त्री को वस्तु की तरह देखने लगता है। विशेषकर स्त्रियों के प्रति आपराधिक होता जाता है।
• अगर पोर्न देखना, बनाना और दिखाना सही है तो इसे भारत में कानूनी मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है?
• अगर पोर्न जो दिखा रही है वह सही हैं तो फिर विवाह, परिवार व समाज की अन्य संस्थाओं की मान्यता समाप्त की जानी चाहिए। सेंसर बोर्ड व अन्य सभी संबंधित कानूनों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
• जो भारतीय पोर्न देखने के समर्थक हैं वे अपनी पोर्न बनाकर अश्लील साइटों पर क्यों नहीं क्यों नहीं डालते हैं?

• पोर्न के व्यापार में लगी हुई साइटों से भारत सरकार टैक्स क्यों नहीं वसूलती? निश्चित रूप से इस कर चोरी की आड़ में अरबों रुपयों का अवैध लेन देने होता होगा।
• क्यों सरकार ने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को ऐसी अवैध साइटों को नहीं दिखाने की स्पष्ट कार्यनीति व जरूरी संसाधन उपलब्ध नहीं कराये? हमारे खाली पड़े लाखों आई टी इंजीनियर इस दिशा में मददगार सिद्ध होंगे।
• इन बैवसाइटों पर जाने के लिए कोई पंजीकरण व शुल्क देकर ही प्रवेश करने की प्रक्रिया क्यों नहीं है?
• भारत सरकार विदेशी सर्वरों पर ही क्यों निर्भर है वह चीन की तरह अपने सर्वर क्यों नहीं विकसित कर रही है? ऐसे में अवैध अश्लील सामाग्री स्वयं ही छंटती जायेगी।
• क्या भारत जैसा एक विकासशील देश जिसका विश्व अर्थव्यवस्था में मात्रा 2 प्रतिशत व बौद्धिक संपदा में 0.01 प्रतिशत हिस्सा हो, वह अपनी नयी पीढ़ी को पोर्न, नशाखेरी, सट्टे व, उपभोक्तावाद व पश्चिमी अपसंस्कृति को शिकार बना तबाह करने की विदेशी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद फैलाने के षडयंत्र का मोहरा बनता जा रहा है? 90 करोड़ गरीबो के देश में पहले सबका विकास हमारी प्राथमिकता है या पोर्न उन्माद?
• क्या कहीं ऐसा तो नहीं है कि चूंकि पश्चिमी देशों में भयंकर मंदी व बेरोजगारी है और बाजार अर्थव्यवस्था में नये रोजगार पैदा नहीं हो रहे ऐसे में वे अपनी ही आबादी की ऐसे अधकचरे रोजगारों में धकेल रहे हों और भारत जैसे देश को भी अपन बाजार बना रहे हैं?
• देश में पोर्न समर्थक मीडिया व बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग कहीं इन बाजारु शक्तियों के ‘लाॅबिंग एजेन्ट तो नहीं हैं, जो भ्रम फैलकार अपनी फंडिंग एजेंसियों के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं?
• क्यों पिछले 20-25 वर्षो में बाजारवाद व खुली अर्थव्यवस्था आने के बाद ही अश्लील बेवसाइटों, ड्रग्स व सट्टे का अवैध कारोबार से धन की निकासी भारत में बढ़कर 15 से 20 लाख करोड़ तक हो गयी और इनके नियमन के लिए कोई कानून नहीं बनाये गये।
• क्या पोर्न समर्थकों ने इन फिल्मों में निर्माण में धकेले गये लोगों के उत्पीड़न व इन पोर्न को देखकर उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों की स्थिति जानने की कोशिश की हैं? क्या इनमें मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाई है?
देशवासियों, क्षणिक भावनाओं में आकर अगर आप अपनी नयी पीढी व देश के भविष्य को गर्त में ढकेलना चाहते हैं तो आपकी मर्जी मगर हम यह कानते हैं कि हर देश की अपनी संस्कृति व विकास चक्र होता है, ग्लोवलाइजेशन’ को अबाध रूप से थोप देने से जो संवेदनहीन व पशुवत समाज हम बनाते जा रहे हैं वह हमें भस्मासुर’ ही बना रहा है अर्थात हम स्वयं ही स्वयं का सर्वनाश करने का प्रबंध कर रहें हैं।
मौलिक भारत ट्रस्ट का आहवान है कि हम अपनी सोच, संस्कृति, मौलिकता, क्रमिक बौद्धिक विकास व चिंतन मंथन से निकली हुई जीवन शैली को ही स्वीकार करें, ग्लोवलाइजेशन के नाम पर हावी बाजारु ताकतों के जीवन दर्शन को कदापि नहीं। अगर सरकार व न्यायालय इस प्रकार के संविधन कानून मानवता, नैतिकता व जनविरोधी कार्यो को रोक पानें में असमर्थ हैं व इनके परिचालन पर नियंत्रण नहीं कर सकती तो उनका अस्तित्व ही निरर्थक है (चीन ने सफलतापूर्वक यह कर दिखाया है।)  नेताओं को इस लोकतांत्रिक देश की जनता ने अपने-अपने पदों पर इसीलिये बैठाया है कि वे देश में यथासंभव कानून का राज्य स्थापित करें न कि अवैध व गैर कानूनी गतिविधियों को संरक्षण दें या उनके आगे आत्मसमर्पण कर दें।
साभार (लिन्क): सुरेश चिपलूणकर 
 

रविवार, 26 जुलाई 2015

आजकल

डॉलर गाथा

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

सांसद

एक सांसद कित्ता भारी
जो लोग वादा कर रहे थे अब वे लोग संसद कैंटीन की सब्सिडी खत्म होने पर अपनी गैस सब्सिडी नही लूंगा के वादे को पूरा करने के लिये तैयार हो जाएंगे । संसद की कैंटीन में मिलने वाला सब्सिडी का सस्ता खाना जल्द ही बंद किया जा सकता है। ये खाना सांसदों और संसद भवन में काम करने वाले अन्य कर्मचारियों को बाहर मिलने वाले खाने की तुलना में काफी कम कीमत में मिलता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर सभी दलों के बड़े नेताओं को सलाह-मश्विरा करने की सलाह दी है। अगर विपक्ष के साथ इस मुद्दे पर कोई राय बनती है तो संसद की कैंटीन के खाने में मिलने वाली सब्सिडी हटाई जा सकती है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी कैंटिन के खाने से सब्सिडी हटाने के लिए राजी हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक सभी बीजेपी सांसद इस सब्सिडी को हटाए जाने के पक्ष में है। 
गौर हो कि संसद की कैंटीन में सांसदों की एक महीने की सैलरी 1.4 लाख की होने के बावजूद उन्हें संसद की कैंटीन में मिलने वाले खाने बड़ी छूट मिलती है। इतना कि एक मसाला डोसा के लिए उन्हें सिर्फ 6 रुपये, एक प्लेट मटन के लिए 20 रुपये, वेजिटेबल स्टियू 4 रुपये, चावल 4 रुपये और मटन बिरयानी 41 रुपये की मिलती है। यहां खाने की कीमत अंतिम बार साल 2010 में संशोधित की गई थी लेकिन पिछले महीने एक आरटीआई में सूचना मांगे जाने पर ये पता चला कि संसद की इस कैंटीन को पिछले पांच सालों में 60.7 करोड़ की सब्सिडी मिली है। इसके तुरंत बाद इस सब्सिडी को हटाए जाने की मांग तेज होने लगी है। कुछ राजनेताओं के एक वर्ग ने इसे अवांछित विशेषाधिकार बताते हुए इसे जल्द से जल्द हटाए जाने की मांग की।

ये मांग तब और तेज हो गई जब पीएम मोदी ने देशवासियों से अपील की, अगर उनके बस में हो तो वे गैस सब्सिडी छोड़ दें। यहाँ सभी तेल कम्पनियों ने भी अपनी कम्पनी के व्योरे में बताया है की अब तक पूरे देश में 80 हजार से ज्यादा लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी है जो की आप तेल कम्पनियो की वेव साईट पर व्योरे का विवरण देख सकते है।
पिछले हफ्ते ही एक सांसद ने लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिखकर कहा कि, 'जनता का सांसदों के प्रति विश्वास बढ़ाने के लिए ज़रुरी है कि इस सब्सिडी को हटा लिया जाए। पीएम मोदी के आग्रह पर जिस तरह से लोगों ने आगे बढ़कर 80 हजार लोगों ने कुकिंग गैस छोड़ने की पहल की है वो स्वागत योग्य है, इसी तर्क के अंतर्गत मुझे लगता है कि हम सांसदों को भी अपनी संसद फूड सब्सिडी छोड़ देनी चाहिए।'
साथ ही सांसदों से संसद में उनकी कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी को समाप्त करने की अपील करते हुए एक ऑनलाइन याचिका जारी की गयी है। संसद भवन परिसर समिति में खाद्य प्रबंधन के अध्यक्ष ए पी जितेंद्र रेड्डी से सब्सिडी समाप्त करने का अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार सांसद ने भी लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को पत्र लिखकर सब्सिडी समाप्त करने की मांग की है। सुमित्रा महाजन ने सोमवार को कहा था कि सब्सिडी और खाद्य पदार्थों और सेवा की गुणवत्ता के मुद्दे पर संसदीय कैंटीन समिति और प्रेस गैलरी समिति समेत सभी पक्षों के साथ संवाद के माध्यम से ध्यान दिया जा रहा है। इसी सत्र में संसद कैंटीन की सब्सिडी बंद की जा सकती है। 
• नरेन्द्र कुमार कुमावत/फ़ेसबुक
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सांसदों को प्राप्त वेतन-सुविधाएं

सांसदों की वेतनवृद्धि: ( पूरा पढ़ें ) वर्तमान में सांसदों को मिलने वाली सुविधायें :-
1. वेतन = 50000/- रु.
2. संसदीय क्षेत्र भत्ता = 45000/- रू. 3. कार्यालय भत्ता खर्च = 45000/- रू. 4. दैनिक भत्ता = 14000/- रुपये औसत ! अन्य भत्ते जोड़कर प्रतिमाह वेतन = 1,54,000/- रुपये !
इसके अतिरिक्त 2000/- रुपये प्रतिदिन संसद में उपस्थिति के जब तक संसद चलता है ! अन्य सुविधायें :-
1. घर में इस्तेमाल के लिये तीन टेलिफोन लाइन, हर लाइन पर सालाना 50,000 लोकल कॉल मुफ़्त !
2. घर में फर्निचर के लिये 75000/- रु. ! 3. पत्नी या किसी और के साथ साल में 34 हवाई यात्रायें मुफ़्त !
4. रेल यात्रा के लिये फ़र्स्ट एसी का टिकट मुफ़्त !
5. घर में सालाना 40 लाख लिटर मुफ़्त पानी ! 
6. सालाना 50 हजार यूनिट बिजली मुफ़्त ! 
7. सड़क यात्रा के लिये 16/- रू. प्रति किलोमीटर का किराया भत्ता ! 
8. सांसद और उसके आश्रितों को किसी भी सरकारी अस्पताल में मुफ़्त इलाज की सुविधा !
9. निजी अस्पतालों में इलाज पर वास्तविक खर्च का भुगतान सरकारी खजाने से ! 
10. दिल्ली के पाॅश इलाके में फ्लैट या बंगला! 
11. वाहन के लिये ब्याज रहित लोन 4,00,000/- रू.
12. कम्प्यूटर खरीदने के लिये दो लाख रुपये सरकारी खजाने से !
13. हर तीसरे महीने पर्दे और सोफा कवर धुलवाने का खर्च सरकारी खजाने से !
14. सबसे बडी बात :- इनकी आय, आयकर से मुक्त है ! इनको income tax नहीं लगता !
* भ्रष्टाचार से होने वाली आय इसके अतिरिक्त है !
हमारी जिन्द्गियों को नर्क बनाने के लिये क्या इतना कम है, जो ये इन सबका भी दुगुना चाह रहे हैं? क्या इन्हीं "अच्छे दिन" के लिये जनता ने सरकार चुनी है?
एक ओर हमारे पीएम साहब आम जनता से अपील करते हैं, कि आप सब्सिडी का पैसा छोड़ दें, जरूरतमंदों के काम आएगा। वो हम गरीबों के खून- पसीनों से कमाई हुई गाढ़ी मेहनत का पैसा भी लूट लेना चाहते हैं, जैसे कि हमें पैसों की कोई जरूरत ही नहीं और अपने लिए इनकी पैसों की भूख मिट ही नहीं रही है, जैसे कि पैसा ही इनके लिए सबकुछ है।
अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता ! वाह रे लुटेरों.. कुछ तो शर्म करो ! इस मैसेज को इतना शेयर करें, कि ये जन जन तक पहुंचे !!
• अनिल ठाकुर विद्रोही/फ़ेसबुक

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

पाबन्दी

मैगी के बाद अब रिवाइटल कैप्सूल बैन
नई दिल्ली: मैगी पर लगे बैन के बाद अब एक के बाद एक खाद्य उत्पादों पर रोक लगनी शुरू हो गई है। मैगी के बाद अब रैनबैक्सी लेबोरेटरी का रिवाइटल कैप्सूल,कॉर्नफ्लैक्स, ब्रेड पर लगाने वाले म्योनीज, सॉस इत्यादि पर रोक लगा दी गई है।
खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रक प्राधिकरण से प्रॉडक्ट एप्रूवल नहीं लेने पर नामी कंपनियों के 40 से अधिक खाद्य उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया है। इन कंपनियों को नोटिस भेजकर प्राधिकरण से एप्रूवल लेने को कहा गया है। जब तक संबंधित उत्पादों की जांच-परख के बाद प्राधिकरण की ओर से एप्रूवल जारी नहीं होता, तब तक ये उत्पाद नहीं बिकेंगे। यदि दूकान पर ये उत्पाद बिकते पाए गए तो उन्हें सीज कर कार्रवाई की जाएगी।
सभी खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को एलर्ट किया गया है कि वे अपने क्षेत्र में प्रतिबंधित उत्पादों की बिक्री किसी भी सूरत में न होने दें। जिन ब्रांडेड खाद्य पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें कॉर्नफ्लैक्स, शक्तिवर्धक कैप्सूल, ब्रेड पर लगाने वाले म्योनीज, सॉस इत्यादि शामिल हैं। विक्रेताओं को ऐसे पदार्थों की बिक्री रोकने कहा गया है।
1) रैनबैक्सी लेबोरेटरी का रिवाइटल कैप्सूल, रिवाइटल सीनियर विमेन कैप्सूल, रिवाइटल टैबलेट,
2) टाटा स्टारबक्र्स का पन्ना कोटा पुडिंग, डार्क कैरमल सॉस, कॉफी फ्रैपुकिनो फ्लेवर्ड सीरप, वनिला सीरप, हेजलनट सीरप, रेस्पबेरी ब्लैक करंट जूस, हनी वनीला सॉस, मैंगो पैशन फ्रूट जूस, बार मोका पाउडर, तिराम्शु सॉस,
3) कैलॉग्स इंडिया का कॉर्नफ्लैक्स,
4) एमवे इंडिया का न्यूट्रालाइट कैल मैग डी, न्यूट्रालाइट बायो सी, न्यूट्रालाइट आयरन फोलिक टैबलेट, न्यूट्रालाइट नेचुरल बी टैबलेट,
5) फील्ड फ्रेश फूड का एग म्योनिज, सलाद ड्रेसिंग वैरिएंट, हाट सॉस, नेचुरल विनेगर,
6) फेरारो इंडिया का मिल्की एंड कोको स्प्रेड, मिल्क चाकलेट,
7) बॉस एंड लॉम्ब का आई केयर आक्यूवाइट सॉफ्ट जेल,
8) जनरल मिल्स इंडिया का चाको लावा केक,
9) बायोमैक्स नेटवर्क का कोलेस्ट्रम प्रोटीन प्रोडक्ट,
) ड्यूक्स कंज्यूमर का केयर चाकलेट मेड यूजिंग वेजिटेबल फैट,
11) फारएवर लिविंग इंपोर्ट का फार एवर विजन, फारएवर किड्स, फारएवर प्रो सिक्स,
12) बायोकान लिमिटेड का बायोमेलेन ट्राइप्कम,
13) गिरनार फूड्स का केसरी ड्राई फ्रूट मसाला,
14) गुडरिच कॉबोहाइड्रेड का गुडरिच चीज डिलाइट,
15) मिनरल वोमेन टैबलेट, स्वीडिश ब्यूटी कांप्लेक्स, वेलनेस स्वीडिश ब्यूटी कांप्लेक्स प्लस,
अधिक देखें
https://www.facebook.com/662500420484021/photos/a.662537260480337.1073741828.662500420484021/915028648564529/?type=1
http://www.punjabkesari.in/news/article-372299


बुधवार, 17 जून 2015

मिलावट

मदर डेयरी के दूध में डिटरजेंट, अमूल जांच में फेल
कोलकाता लैब से जांच की मांग
देश में मचा हड़कंपअभिहीत अधिकारी रामनरेश यादव ने बताया कि नवंबर 2014 में बाह क्षेत्र में मदर डेयरी के कलेक्शन सेंटर से दूध के दो सैंपल लिए गए थे। इन नमूनों को जांच के लिए लखनऊ की लैब में भेजा गया। नूडल्स, एनर्जी ड्रिंक, पैक्ड फूड की गुणवत्ता पर सवाल उठने से देश में हड़कंप मचा हुआ है। अब नामचीन कंपनियों के पैक्ड दूध में मिलावट पाई जा रही है। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के परीक्षण में मदर डेयरी और अमूल दूध के सैंपल फेल पाए गए हैं। मदर डेयरी के एक सैंपल में तो डिटरजेंट की मिलावट पाई गई है। 
परीक्षण में लैब ने दोनों ही नमूनों को अधोमानक घोषित किया। मदर डेयरी प्रबंधन ने लखनऊ की लैब को चुनौती देते हुए कोलकाता लैब से जांच कराने की मांग की है। 
उनकी मांग पर दूध की जांच कोलकाता लैब में कराई गई तो लैब ने परीक्षण में पाया कि दूध का एक सैंपल अधोमानक था और दूसरे में डिटरजेंट की मिलावट थी जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। 
इसी तरह अमूल दूध का एक सैंपल भी 2014 में लिया गया था। इस सैंपल की जांच लखनऊ की लैब में कराई गई थी। सैंपल फेल हो गया। अमूल का पैकेट बंद दूध अधोमानक पाया गया है।
• अमर उजाला

गुरुवार, 7 मई 2015

सवाल

सवाल ही सवाल हैं भाजपा के लिए
भारतीय जनता पार्टी के नेता सदस्‍यता के बाद अब महासंपर्क अभि‍यान शुरू कर रहे हैं। यूपी में उनका लगभग 1.44 लाख सदस्‍यों से मि‍लने का लक्ष्‍य है। इस वृहद संवाद अभि‍यान में जो प्रश्‍न उनका इंतजार कर रहे हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
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(1) कश्‍मीर में मुफ्ती की सरकार क्‍यों जरूरी थी? (2) स्‍वि‍ट्जर लैंड से जब पैसे ला नहीं सकते थे तो सौ दि‍न में इसे लौटाने का दावा करते क्‍यों घूम रहे हो, वह भी सौ दि‍न में! (3) नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस से संबधि‍त फाइलों में ऐसे क्‍या राज हैं जि‍नके आगेे प्रचंड बहुमत वाली मोदी सरकार भी बौनी साबि‍त हो रही है? (4) पेयजल और स्‍वच्‍छता मंत्रालय के अभि‍यान के नाम पर क्‍यों करोडों रुपये खर्च कर वि‍द्या बालन जैसी लोकप्रि‍य कलाकार का दुरुपयोग कर रहे हो। 'क्‍यों कि‍ काकी को फटकारने 'और मक्‍खि‍यों से बति‍याने वाली इस हीरोइन को क्‍या मालूम कि‍ शौंचालय में सही बने सीवर सि‍स्‍टम में पहुच सके तभी गंदगी दूर होती है अन्यथा घर में बना शौंचालय साफ रखना कि‍तना मुश्‍कि‍ल होता है। बैहतर हो हीरोइन, काकी और मक्‍खि‍यों के बीच होने वाले इस करोडों के खर्चीले संवाद को बन्‍द कर पीएम श्री नरेन्‍द्र मोदी देश भर के मेयरों और नगर नि‍गमों के नगरायुक्‍तो या पार्षदों से सीधा संवाद करें। जेएनयूआरएम योजना को बन्‍द कर भाजपा सरकार ने सीवरीकरण के वि‍स्‍तार को रुकवा दि‍या है। आगरा में ही केवल 45 प्रति‍शत क्षेत्र ही सीवरीकृत है। (4) नये खुले करोडों खातों में से अस्‍सी प्रति‍शत असंचालि‍त क्‍यों हैं। कई के खुलने के बाद एक भी ट्रांजैक्‍शन नहीं हुआ। क्‍या यह हमारी माईक्रो इकनामी की जड़ता का प्रतीक नहीं है।  (5) कुकि‍ंग गैस वि‍तरक कांग्रेस के शासन में ही एकाधि‍कारी जागीरदार की स्‍थि‍ति‍ मेंं थे अब और भी क्रूर हो गये हैं। तेल कंपनि‍यां इनके वि‍रुद्ध की गयी शिकायतों को नहीं सुनतीं। रेल को भैय्या पब्‍लि‍क की ही रहेने दो। 'प्रभु' की कृपा केवल रिजर्वेशन वालों तक ही है, दूसरे दर्जे का अनारक्षि‍त (जनरल कोच) की बदहाली और बढी़ है। (6) मोटर व्हीकल एक्‍ट में जुर्माना राशि‍ बढाने से ट्रेफि‍क की सहूलि‍यत और प्रदूषण तो घटा नहीं आमजनता परेशानि‍यां ही बढ गयी हैं। चौराहों के मैनेजर जहां पूर्व में सौ दो सौ में ही 'डि‍स्‍प्‍यूट सैटि‍लमेंट' कर देते थे। अब वे पांच हजार से शुरू होने वाले 'फाइन स्‍लैब' को दि‍खा कर ढाई तीन से कम पर बात नहीं करते। स्‍कोप और मार्जिन बढ जाने से चौराहे के 'आफीशि‍यल मैनेजर' ईमानदार हो गये है लेनदेन की प्रोसेसि‍ंग का  सारा काम पैरासाइट प्रोक्सी सि‍स्‍टम कर रहा है।
• राजीव सक्सेना
http://www.agrasamachar.com 

रविवार, 3 मई 2015

पेन कार्ड

क्या-क्या छिपा हुआ है आपके पेन कार्ड में
पैन कार्ड एक ऐसा कार्ड है, जिस पर लिखे कोड में व्यक्ति की पूरी कुंडली छुपी होती है। लेकिन, आपने ये सोचा है कि आखिर परमानेंट अकाउंट नंबर, यानी पैन नंबर में ऐसा क्या छिपा है जो आपके और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए जरूरी है। चलिए हम आपको पैन कार्ड और पैन नंबर से जुड़ी पूरी जानकारी देंगे। हम यह भी बताएंगे कि पैन कार्ड पर मौजूद नंबर का क्या मतलब होता है।
पैन कार्ड पर कार्ड धारक का नाम और डेट ऑफ बर्थ लिखी होती है लेकिन पैन कार्ड के नंबर में आपका सरनेम भी होता है। पैन कार्ड की पांचवी डिजिट आपके सरनेम को दर्शाती है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट कार्ड धारक के सरनेम को ही मानता है। इसलिए नंबर में भी उसकी जानकारी होती है। लेकिन, टैक्स डिपार्टमेंट ये बात कार्ड धारक को नहीं बताता कि उसकी पूरी कुंडली इन नंबरों में छिपी है।
आइए जानते हैं पैन कार्ड में दिए गए हर नंबर का क्या होता है मतलब। पैन कार्ड नंबर एक 10 डिजिट का खास नंबर होता है, जो लेमिनेटेड कार्ड के रूप में आता है। इसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उन लोगों को जारी करता हैं, जो पैन कार्ड के लिए अर्जी देते हैं। पैन कार्ड बन जाने के बाद उस व्यक्ति के सारे फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन डिपार्टमेंट के पैन कार्ड से लिंक हो जाते हैं। इनमें टैक्स पेमेंट, क्रेडिट कार्ड जैसे कई फाइनेंशियल लेन-देन डिपार्टमेंट की निगरानी में रहते हैं।
इस नंबर के पहले तीन डिजिट अंग्रेजी के लेटर्स होते हैं। यह AAA से लेकर ZZZ तक कोई भी लेटर हो सकता है। ताजा चल रही सीरीज के हिसाब से यह तय किया जाता है। यह नंबर डिपार्टमेंट अपने हिसाब से तय करता है। पैन कार्ड नंबर का चौथा डिजिट भी अंग्रेजी का ही एक लेटर होता है। यह पैन कार्डधारी का स्टेटस बताता है। इसमें ये हो सकती है चौथी डिजिट-
P- एकल व्यक्ति
F- फर्म
C- कंपनी
A- AOP ( एसोसिएशन ऑफ पर्सन)
T- ट्रस्ट
H- HUF (हिन्दू अनडिवाइडिड फैमिली)
B-BOI (बॉडी ऑफ इंडिविजुअल)
L- लोकल
J- आर्टिफिशियल जुडिशियल पर्सन
G- गवर्नमेंट के लिए होता है
सरनेम के पहले अक्षर से बना पांचवा डिजिट। पैन कार्ड नंबर का पांचवा डिजिट भी ऐसा ही एक अंग्रेजी का लेटर होता है। यह डिजिट पैन कार्डधारक के सरनेम का पहला अक्षर होता है। यह सिर्फ धारक पर निर्भर करता है। गौरतलब है कि इसमें सिर्फ धारक का लास्ट नेम ही देखा जाता है।
इसके बाद पैन कार्ड में 4 नंबर होते हैं। यह नंबर 0001 से लेकर 9999 तक, कोई भी हो सकते हैं। आपके पैन कार्ड के ये नंबर उस सीरीज को दर्शाते हैं, जो मौजूदा समय में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चल रही होती है। इसका आखिरी डिजिट एक अल्फाबेट चेक डिजिट होता है, जो कोई भी लेटर हो सकता है।
moneybhaskar.com May 02, 2015

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

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ग़ौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 मेंउत्पाद और सेवाएं शामिल हैं। उत्पाद वे होते हैं, जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। सेवाओं में परिवहन, टेलीफोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं। आम तौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि. इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस क़ानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक़, किसी भी वस्तु को क़ीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। अगर उसे खरीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नज़र आती है तो वह ज़िला उपभोक्ता फोरम की मदद ले सकता है. इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक़, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों।
यह क़ानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है। 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने प़डते थे। इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज़्यादा खर्च होता था। इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना प़डता था। इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने ज़िला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया। यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग क़ानून बना रखा है। इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, ज़िला स्तर पर ज़िला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग। अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं- पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार। ज़िला मंच में 20 लाख रुपये तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करो़ड़ रुपये तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करो़ड़ रुपये से ज़्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह धन संबंधी अधिकार है। जिस ज़िले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है. इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है। मान लीजिए, ज़िला मंच को शिकायत दी गई। शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर ज़िला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे. उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं. ज़िला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है। इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है. प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी। अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो ज़िला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या क़ीमत वापस करे या नुक़सान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि। अगर शिकायतकर्ता ज़िला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिला़फ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है. इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की क़ैद या 10 हज़ार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों सज़ाएं हो सकती हैं।
कुछ ही बरसों में इस क़ानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इसके ज़रिये लोगों को शोषण के खिला़फ आवाज़ बुलंद करने का साधन मिल गया. इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया। संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बक़ाया राशियों के समान प्रमाणपत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवज़े की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, ज़िला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, ज़िला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नक़ली सामान/निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाएं. इसी क़ानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं। इस क़ानून से पहले उपभोक्ता ब़डी कंपनियों के खिला़फ बोलने से गुरेज़ करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीग़ढ से कुरुक्षेत्र फोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के खिला़फ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली। इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1.5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया. इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीड़ित किए जाने पर भारतीय रेल के खिला़फ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया। नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगा दिया। बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहा़ड के पशु आहार वि क्रेता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया। मामले के मुताबिक़, ओडिसा के बेलपहा़ड के पशुपालक राम नरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार खरीदा था। इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछड़ियों ने दम तो़ड दिया। इसके अलावा बेल पहाड़ के जुल्फिकार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई। पीड़ितों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है। राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इंकार कर दिया। इस पर राम नरेश ने ज़िला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी क़रार दिया। इस फैसले के खिला़फ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की। राष्ट्रीय अदालत के जज जे एम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हज़ार रुपये का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है. इस क़ानून से पहले जहां देश में स़िर्फ 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हज़ारों में है. उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है। सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है। देश भर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डायल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं। उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी तब माना था कि राज्य सरकारें उपभोक्ता मंच और आयोग को सुविधा संपन्न बनाने के लिए केंद्र द्वारा जारी बजट का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। इस बजट का समुचित उपयोग होना चाहिए। उनका यह भी मानना था कि उपभोक्ताओं को मालूम होना चाहिए कि वे जो खा रहे हैं, उसमें क्या है, उसकी गुणवत्ता क्या है, उसकी मात्रा और शुद्धता कितनी है? उत्पादकों को भी चाहिए कि वे अपने उत्पाद के इस्तेमाल से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की भी विस्तृत जानकारी दें। बहरहाल, उपभोक्ताओं को खरीदारी करते व़क्त सावधानी बरतनी चाहिए। उपभोक्ताओं को विभिन्न आधारभूत पहलुओं जैसे अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी), सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, उत्पादों पर भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) का निशान और समाप्ति की तारी़ख के बारे में जानकारी होनी चाहिए. इसके बावजूद अगर उनके साथ धोखा होता है तो उसके खिला़फ शिकायत करने का अधिकार क़ानून ने उन्हें दिया है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

उपभोक्ताओं की परेशानियां
सेहत के लिए नुक़सानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर प़डता है, जैसे दूध से क्रीम निकाल कर बेचना।
टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के ज़रिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना।
वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना।
बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना।
दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना।
क़ीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना।
उत्पाद पर ग़लत या छुपी हुई दरें लिखना।
वस्तुओं के वज़न और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना।
थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।
अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का ग़लत तौर पर निर्धारण करना।
एमआरपी से ज़्यादाक़ीमत पर बेचना।
दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनाधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना।
कमज़ोर उपभोक्ताएं सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो।
बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना।
उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना।
गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना।
उपभोक्ताओं के अधिकार
जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिला़फ सुरक्षा का अधिकार।
सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य, जैसा भी मामला हो, के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके।
जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन।
उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार।
अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार।
सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार।
माप-तोल के नियम
हर बाट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए।
एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन ज़रूरी है।
पत्थर, धातुओं आदि के टुक़डों का बाट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता।
फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराज़ू हाथ में पक़ड कर तोलने की अनुमति नहीं है।
तराज़ू एक हुक या छ़ड की सहायता से लटका होना चाहिए।
लक़डी और गोल डंडी की तराज़ू का इस्तेमाल दंडनीय है।
कप़डे मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए।
तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए।
मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वज़न शामिल नहीं किया जा सकता।
पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तोल एवं क़ीमत कर सहित अंकित हो. साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए।
पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए।
साभार: चौथी दुनिया