पशु वध
मेनका जी या (मानेका) और इस सरकार को रोकता कौन है पशु वध पर रोक लगाने से। जंगल अब भी खूब कट रहे हैं- लक्ड़ी का फ़र्नीचर खूब बन-बिक रहा है। ट्रक भरभर कर लकड़ी आ रही है। पशु वध कड़ाई से रोको, जंगल बचाओ और लोगों को मांसाहार के नुकसान बताते हुए शाकाहारी बनने को प्रेरित करो। जब धूम्रपान-तम्बाकू-गुटखा के मामले में कड़े कदम उठा सकते हैं तो इस मामले में क्यों नहीं। गलत परम्पराएं बन्द भी की जा सकती हैं। ध्वनिविस्तारक (लाउडस्पीकर), रेडियो-टीवी-फ़िल्म, मोबाइल फ़ोन, कम्प्यूटर आदि तमाम चीजें किसी परम्परा का अंग नहीं हैं पर दशकों से उपयोग में लाई जा रही हैं। तो क्या कुर्बानी/बलि/ त्यौहार/आहार के लिए पशु वध/बलि की परम्परा को सख्ती से बन्द नहीं किया जा सकता। दरअसल एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो पशु धन को नष्ट करके अपना धन्धा जमाए हुए है। मांस, चमड़े आदि की खपत-निर्यात से यह वर्ग भरपूर कमाई करता है।....कहने को बहु
त कुछ है पर किसे समझाएं, जिन्हें समझाना चाहते हैं वे सभी ‘छंटे’ हुए समझदार हैं।
मेनका जी या (मानेका) और इस सरकार को रोकता कौन है पशु वध पर रोक लगाने से। जंगल अब भी खूब कट रहे हैं- लक्ड़ी का फ़र्नीचर खूब बन-बिक रहा है। ट्रक भरभर कर लकड़ी आ रही है। पशु वध कड़ाई से रोको, जंगल बचाओ और लोगों को मांसाहार के नुकसान बताते हुए शाकाहारी बनने को प्रेरित करो। जब धूम्रपान-तम्बाकू-गुटखा के मामले में कड़े कदम उठा सकते हैं तो इस मामले में क्यों नहीं। गलत परम्पराएं बन्द भी की जा सकती हैं। ध्वनिविस्तारक (लाउडस्पीकर), रेडियो-टीवी-फ़िल्म, मोबाइल फ़ोन, कम्प्यूटर आदि तमाम चीजें किसी परम्परा का अंग नहीं हैं पर दशकों से उपयोग में लाई जा रही हैं। तो क्या कुर्बानी/बलि/ त्यौहार/आहार के लिए पशु वध/बलि की परम्परा को सख्ती से बन्द नहीं किया जा सकता। दरअसल एक ऐसा बड़ा वर्ग है जो पशु धन को नष्ट करके अपना धन्धा जमाए हुए है। मांस, चमड़े आदि की खपत-निर्यात से यह वर्ग भरपूर कमाई करता है।....कहने को बहु
त कुछ है पर किसे समझाएं, जिन्हें समझाना चाहते हैं वे सभी ‘छंटे’ हुए समझदार हैं।
• कार्टूनिस्ट चन्दर
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