‘सूरकुटी’ पहुंचने को खरीदना पड़ता है
ताजमहल से भी महंंगा टिकट
ताजमहल से कही महंगा और झंझट भरा है सूरकुटी तक का आना जाना। इस स्थान तक पहुंचने को तीस रुपये का शुल्क टिकट के रूप में वन विभाग वसूलता है।यही नहीं अगर वाहन का इस्तेमाल आने जाने में किया जाता है तो उसका शुल्क अलग से चुक्ता करना होता है।
आगरा पर्यावरण और वन संरक्षण कानूनों की मनमानी व्याख्याओं और कागजी हुक्मो से आगरा के विकास कार्यों को तो धक्का लगता ही रहा है, हिन्दी साहित्य प्रमुख स्थंभ महाकवि सूरदास को तो आम जनता से एक दम दूर ही कर दिया गया है।
सूरकुटी |
सूरदास जी कर्मस्थली कीठम गांव में यमुना किनारे पर है।यहां पुराने मन्दिर और सूरकुटी स्थित हैं। देश के पुराने आश्रम पद्यति के दृष्टिहीन विद्यालयों में से एक यहां अब भी संचालित है। किन्तु इस स्थान तक पहुंचने को तीस रुपये का शुल्क टिकट के रूप में वन विभाग वसूलता है।यही नहीं अगर वाहन का इस्तेमाल आने जाने में किया जाता है तो उसका शुल्क अलग से चुक्ता करना होता है।
गुपचुप तरीके से लगा डाला टिकट
जब भी बात हुई तब तब राष्ट्रीय चम्बल सेंचुरी प्रोजेक्ट के कार्य अधिकारियों की ओर से यही कहा जाता रहा कि सेचुरी क्षेत्र में होकर आने-जाने वाले मार्ग पर पडने से सूरकुटी जाने को भी टिकट खरीदना होगा। जब भी सूरकुटी के लिये वैकल्पिक मार्ग दिये जाने का मुद्दा सामने रखा गया उस पर भी सरकारी तंत्र की ओर से विचार करने से हाथ खडे़ कर दिये गये। सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि जिस रास्ते पर बैरियर लगाकर वन विभाग वसूली करता है,मूल रूप से वह कुटी के लिये ही जिला पंचायत की ओर से बनाया गया था। यही नहीं, जिस गैस्ट हाऊस को वन विभाग ने अपने प्रबंधन में ले रखा है, वह भी लोकनिर्माण विभाग के द्वारा तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री स्व. जगन प्रसाद रावत ने अपने प्रयासों से बनवाया था जो कि सूर स्मारक मंडल के भी पदाधिकारी रहे थे।
अप्रत्याशित रूप से लगना शुरू हुए प्रतिबंध
सबसे आश्चर्यजनक यह है कि सूरकुटी का क्षेत्र कब बर्ड सेंचुरी क्षेत्र में आया और कब इसके लिए जनुनवायी हुई यह भी कम से कम सूरस्मारक मंडल के पदाधिकारियों ही नहीं आसपास के ग्रामीणों तक को तब मालूम हुआ जब एक-एक कर प्रतिबंध लगाये जाने का क्रम शुरू हो गया। बाद में जब ईको सेंस्टिव जोन की बैठकें शुरू हुईं तो उनमें से कुछ में रस्मारक मंडल के प्रतिनिधयों को बुलाया जरूर गया किन्तु उनकी कोई बात नही सुनी गयी। अब तो पुनर्गठित कमेटी में उन्हें बुलाया भी नहीं जाता है।
केन्द्र के रुख से राहत संभव
अब तक रहे केन्द्र सरकार के रवैय में आये बदलाव से सूरस्मारक मंडल को कुछ राहत मिल पाने की उम्मीद है, बशर्ते अधिकारी भी इस बदला को महसूस करने की स्थिति में हों। इस बदलाव का संकेत केन्द्रीय जल साधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने उत्तराखंड में गोमुख से उत्तरकाशी (150 किमी.) तक घोषित ईको सेंसेटिव जोन पर फिर से विचार करने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही व्यापक परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा कि ईको सेंसेटिव जोनों की गलत व्याख्या की गई है। प्रकृति के संरक्षण के नाम पर कानूनों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल किया जाता रहा है। स्थानीय लोगों के हितों की अनदेखी हुई है। इसमें क्षेत्रीय जनसमुदाय के हितों को भी शामिल किया जाना चाहिए। मीडिया से बातचीत में मंत्री ने कहा कि जिस तरह ईको सेंसेटिव जोन क्षेत्र में तमाम गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिशें की जाती है, उससे लगता है कि इसकी गलत व्याख्या की गयी। क्षेत्र के संसाधनों पर पहला हक स्थानीय लोगों का है। ईको सेंसेटिव जोन पर फिर से विचार किया जाए और स्थानीय लोगों के हक -हुकूक सुरक्षित किए जाएं।
सरकार की नीति के विरूद्ध अपनाया जाता रहा है रवैयाा
सूरस्मारक मंडल के महामंत्री डॉ. गिरीश चन्द्र शर्मा और निवर्तमान महामंत्री डॉ. विजय लक्ष्मी शर्मा ने कहा है कि इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा कि भारत सरकार की सांस्कृतिक और एतिहासिक महत्व के स्थलों को संरक्षित करने की नीति है किन्तु सूरकुटी के मामले मे सरकारी विभाग ही असहयोग की नीति अपनाने को आमादा हैं।
• राजीव सक्सेना
सौजन्य लिन्क: आगरा समाचार
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