गौ माता
गाय को माता मानने वाले लोग एक खास वर्ग की तरफ नफरत की भावना से भी देखते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इन लोगों के ‘अपने’ ही सबसे ज्यादा गौ हत्याएं करते हैं। जी हां, सड़कों पर आप इधर-उधर घूमती जिन गायों को देखते हैं, उन्हें इसलिए आवारा छोड़ दिया गया होता है क्योंकि वे किसी काम की नहीं होतीं। जो गायें प्रजनन नहीं कर पातीं या बूढ़ी हो जाती हैं उन्हें बोझ समझा जाने लगता है। गायों को दूध के लिए पालते हैं लोग। अब अगर गाय दूध नहीं देगी, तो फिर वो उनके किस काम की? इसलिए इन ‘नकारी’ माताओं को लावारिस छोड़ दिया जाता है। ये माताएं सड़कों पर कूड़े के ढेर में मुंह मारती हैं और लोगों की गालियां सुनते हुए, मार खाते हुए इधर से उधर भागती रहती हैं। थक हारकर एक दिन ये माताएं दर्दनाक मौत मर जाती हैं। यह भी तो गौ हत्या ही है, फर्क बस इतना है कि हत्या के बाद इनका मांस नहीं खाया जाता।
हैरानी इस बात की है कि यह सब गाय को माता मानने वालों की आंखों के सामने होता है। कहीं गाय की हत्या होती है, तो लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। क्या सड़क पर ये मंजर देखकर उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती? अगर वे गाय को माता मानते हैं, तो गाय की ऐसी दुर्गति कैसे देख सकते हैं? क्या यही है मां के लिए उनकी इज्जत? मैं जानती हूं कि इन सवालों के जवाब में वे लोग अपनी मजबूरियां गिनाएंगे। गाय को लेकर सिर्फ राजनीति ही नहीं होती, गोरखधंधा भी चलता है। गाय की सेवा के नाम पर न जाने कितने सदन, समितियां, संस्थाएं वगैरह बनी हैं, लेकिन वे गायों के लिए कुछ भी नहीं करतीं। सच यह है कि हम अपनी जीवन में दोहरे मापदंड अपनाते हैं। गाय को माता मानना भी इसका एक उदाहरण है। स्वार्थ है तो गाय माता है, वरना एक जानवर।
• अनिल ठाकुर/फ़ेसबुक
गाय को माता मानने वाले लोग एक खास वर्ग की तरफ नफरत की भावना से भी देखते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इन लोगों के ‘अपने’ ही सबसे ज्यादा गौ हत्याएं करते हैं। जी हां, सड़कों पर आप इधर-उधर घूमती जिन गायों को देखते हैं, उन्हें इसलिए आवारा छोड़ दिया गया होता है क्योंकि वे किसी काम की नहीं होतीं। जो गायें प्रजनन नहीं कर पातीं या बूढ़ी हो जाती हैं उन्हें बोझ समझा जाने लगता है। गायों को दूध के लिए पालते हैं लोग। अब अगर गाय दूध नहीं देगी, तो फिर वो उनके किस काम की? इसलिए इन ‘नकारी’ माताओं को लावारिस छोड़ दिया जाता है। ये माताएं सड़कों पर कूड़े के ढेर में मुंह मारती हैं और लोगों की गालियां सुनते हुए, मार खाते हुए इधर से उधर भागती रहती हैं। थक हारकर एक दिन ये माताएं दर्दनाक मौत मर जाती हैं। यह भी तो गौ हत्या ही है, फर्क बस इतना है कि हत्या के बाद इनका मांस नहीं खाया जाता।
हैरानी इस बात की है कि यह सब गाय को माता मानने वालों की आंखों के सामने होता है। कहीं गाय की हत्या होती है, तो लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। क्या सड़क पर ये मंजर देखकर उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती? अगर वे गाय को माता मानते हैं, तो गाय की ऐसी दुर्गति कैसे देख सकते हैं? क्या यही है मां के लिए उनकी इज्जत? मैं जानती हूं कि इन सवालों के जवाब में वे लोग अपनी मजबूरियां गिनाएंगे। गाय को लेकर सिर्फ राजनीति ही नहीं होती, गोरखधंधा भी चलता है। गाय की सेवा के नाम पर न जाने कितने सदन, समितियां, संस्थाएं वगैरह बनी हैं, लेकिन वे गायों के लिए कुछ भी नहीं करतीं। सच यह है कि हम अपनी जीवन में दोहरे मापदंड अपनाते हैं। गाय को माता मानना भी इसका एक उदाहरण है। स्वार्थ है तो गाय माता है, वरना एक जानवर।
• अनिल ठाकुर/फ़ेसबुक
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