डॉक्टर हैं कि दलाल
मेडीकल रिप्रेंजेंटेटिव यानी एम.आर.यानी किसी दवा कम्पनी का प्रतिनिधि जो अपने साथ अपनी कम्पनी की जरूरी/गैर जरूरी दवा का बाज़ार बनाने के लिए डॉक्टर दर डॉक्टर भटकता है। पिछले कुछ दशकों से एम.आर. का महत्व काफ़ी बढ़ गया है। ये अपनी दवाओं के बारे में डॉक्टरों को समझाते हैं और उन दवाओं की बिक्री बढ़ाने का प्रबन्ध करते हैं। ये दवा कंपनिया डॉक्टर को ४०-५०% तक नकद कमीशन और महंगे उपहार देती है।
डॉक्टर आवश्यक-अनावश्यक रूप से खून, थूक, वीर्य आदि विभिन्न जांचें कराने के अलावा एक्स-रे, डिज़िटल एक्स-रे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है, ऑपरेशन करते-कराते है तो उसमे कमीशन खाते है। किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर या अस्कोपताल-नर्सिंग होम को मरीज को रैफ़र करने में ३०-४०% कमीशन। दवा की दुकानों से कमीशन और उपहार। मधुमेह, उच्च या निम्न रक्तचाप जैसे कई रोगों में मरीज को आजीवन दवाओं के सहारे रहना पड़ता है। कोई डॉक्टर अपने मरीज को किसी दवा के दुष्परिणामों या साइड इफ़ैक्ट्स के बारे में नहीं बताता। अगर किसी दवा से मरीज पर कोई बुरा असर पड़ता है तो इससे डॉक्टर की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता।
आज भगवान का स्वरूप माने जाने वाले जितने डॉक्टर आप देखते हैं उनमें से ९६-९८% डॉक्टर कमीशन से ही अपने और अपने परिवार का शाही तरीके से पालन-पोषण कर रहे हैं भले ही इसके लिए अनगिनत लोगों का खून चूसना पड़ता हो या कमीनापन देना पड़ता हो। लोगों की मज़बूरी है कि यह जानते हुए भी कि हर तरह से लुटना ही है, डॉक्टर के पास जाना ही पड़ता है। यह जरूरी नहीं कि आपको सामान्य बुखार है तो आपका डॉक्टर बुखार की ही दवा दे। वह आपको टीबी घोषित करके ६-७ महीने दवाएं खिलाते हुए समय समय पर अनेक जांचें कराने को भी कह सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हमारे देश में अधिकतम ३५० दवाओं की जरूरत है। और भारत में 84000 दवाएं बिक रही हैं। इसका अर्थ यही है कि हमारा डॉक्टर अनावश्यक रूप से वे गैरजरूरी दवाएं हमें खिलाते हैं जिनसे स्वयं उन्हें आर्थिक लाभ होता है। इसीलिए डॉक्टर इस तरह की दवाएं लेने की सिफ़ारिश करते हैं। ये दवाएं आम लोगों को खिलाई जाती है। कोई डॉक्टर खुद अपने या किसी परिजन के लिए उन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता। कारण, उनको इन दवाओं के साइड एफ़ैक्ट मालूम होते हैं।
इस पूरी राम कहानी का सार यह है कि आज अधिकांश डॉक्टर दवा कम्पनियों, पैथॉलॉजीकल लैब, फ़िज़ियोथैरेपी केन्द्र आदि के दलाल बनकर रह गये हैं- रोगियों को लूटकर अपनी अनुचित काली कमाई बढ़ाने की खातिर।
• टी.सी. चन्दर
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डॉक्टर आवश्यक-अनावश्यक रूप से खून, थूक, वीर्य आदि विभिन्न जांचें कराने के अलावा एक्स-रे, डिज़िटल एक्स-रे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है, ऑपरेशन करते-कराते है तो उसमे कमीशन खाते है। किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर या अस्कोपताल-नर्सिंग होम को मरीज को रैफ़र करने में ३०-४०% कमीशन। दवा की दुकानों से कमीशन और उपहार। मधुमेह, उच्च या निम्न रक्तचाप जैसे कई रोगों में मरीज को आजीवन दवाओं के सहारे रहना पड़ता है। कोई डॉक्टर अपने मरीज को किसी दवा के दुष्परिणामों या साइड इफ़ैक्ट्स के बारे में नहीं बताता। अगर किसी दवा से मरीज पर कोई बुरा असर पड़ता है तो इससे डॉक्टर की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता।
आज भगवान का स्वरूप माने जाने वाले जितने डॉक्टर आप देखते हैं उनमें से ९६-९८% डॉक्टर कमीशन से ही अपने और अपने परिवार का शाही तरीके से पालन-पोषण कर रहे हैं भले ही इसके लिए अनगिनत लोगों का खून चूसना पड़ता हो या कमीनापन देना पड़ता हो। लोगों की मज़बूरी है कि यह जानते हुए भी कि हर तरह से लुटना ही है, डॉक्टर के पास जाना ही पड़ता है। यह जरूरी नहीं कि आपको सामान्य बुखार है तो आपका डॉक्टर बुखार की ही दवा दे। वह आपको टीबी घोषित करके ६-७ महीने दवाएं खिलाते हुए समय समय पर अनेक जांचें कराने को भी कह सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हमारे देश में अधिकतम ३५० दवाओं की जरूरत है। और भारत में 84000 दवाएं बिक रही हैं। इसका अर्थ यही है कि हमारा डॉक्टर अनावश्यक रूप से वे गैरजरूरी दवाएं हमें खिलाते हैं जिनसे स्वयं उन्हें आर्थिक लाभ होता है। इसीलिए डॉक्टर इस तरह की दवाएं लेने की सिफ़ारिश करते हैं। ये दवाएं आम लोगों को खिलाई जाती है। कोई डॉक्टर खुद अपने या किसी परिजन के लिए उन दवाओं का इस्तेमाल नहीं करता। कारण, उनको इन दवाओं के साइड एफ़ैक्ट मालूम होते हैं।
इस पूरी राम कहानी का सार यह है कि आज अधिकांश डॉक्टर दवा कम्पनियों, पैथॉलॉजीकल लैब, फ़िज़ियोथैरेपी केन्द्र आदि के दलाल बनकर रह गये हैं- रोगियों को लूटकर अपनी अनुचित काली कमाई बढ़ाने की खातिर।
• टी.सी. चन्दर
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